hindiperiod.comSep 10, 20201 min readमैं नहीं चाहता चिर सुख | सुमित्रानंदन पंतमैं नहीं चाहता चिर सुख : सुमित्रानंदन पंतमैं नहीं चाहता चिर-सुख,मैं नहीं चाहता चिर दुख;सुख-दुख की खेल मिचौनीखोले जीवन अपना मुख।सुख-दुख के मधुर मिलन सेयह जीवन हो परिपूरण;फिर घन में ओझल हो शशि,फिर शशि से ओझल हो घन।जग पीड़ित है अति-दुख से,जग पीड़ित रे अति-सुख से,मानव-जग में बँट जावेंदुख सुख से औ’ सुख दुख से।अविरत दुख है उत्पीड़न,अविरत सुख भी उत्पीड़न,दुख-सुख की निशा-दिवा में,सोता-जगता जग-जीवन।यह साँझ-उषा का आँगन,आलिंगन विरह-मिलन का;चिर हास-अश्रुमय आननरे इस मानव-जीवन का!
मैं नहीं चाहता चिर सुख : सुमित्रानंदन पंतमैं नहीं चाहता चिर-सुख,मैं नहीं चाहता चिर दुख;सुख-दुख की खेल मिचौनीखोले जीवन अपना मुख।सुख-दुख के मधुर मिलन सेयह जीवन हो परिपूरण;फिर घन में ओझल हो शशि,फिर शशि से ओझल हो घन।जग पीड़ित है अति-दुख से,जग पीड़ित रे अति-सुख से,मानव-जग में बँट जावेंदुख सुख से औ’ सुख दुख से।अविरत दुख है उत्पीड़न,अविरत सुख भी उत्पीड़न,दुख-सुख की निशा-दिवा में,सोता-जगता जग-जीवन।यह साँझ-उषा का आँगन,आलिंगन विरह-मिलन का;चिर हास-अश्रुमय आननरे इस मानव-जीवन का!