hindiperiod.comSep 10, 20201 min readपुष्प की अभिलाषा | माखनलाल चतुर्वेदीपुष्प की अभिलाषा- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)चाह नहीं, मैं सुरबाला केगहनों में गूँथा जाऊँ,चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंधप्यारी को ललचाऊँ,चाह नहीं सम्राटों के शव परहे हरि डाला जाऊँ,चाह नहीं देवों के सिर परचढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक!मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
पुष्प की अभिलाषा- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)चाह नहीं, मैं सुरबाला केगहनों में गूँथा जाऊँ,चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंधप्यारी को ललचाऊँ,चाह नहीं सम्राटों के शव परहे हरि डाला जाऊँ,चाह नहीं देवों के सिर परचढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक!मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,जिस पथ पर जावें वीर अनेक!