hindiperiod.comSep 10, 20201 min readमुक्ति की आकांक्षा | सर्वेश्वरदयाल सक्सेनामुक्ति की आकांक्षा- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)चिडि़या को लाख समझाओकि पिंजड़े के बाहरधरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,वहाँ हवा में उन्हेंअपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,पर पानी के लिए भटकना है,यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।बाहर दाने का टोटा है,यहाँ चुग्गा मोटा है।बाहर बहेलिए का डर है,यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।फिर भी चिडि़यामुक्ति का गाना गाएगी,मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,हरसूँ ज़ोर लगाएगीऔर पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
मुक्ति की आकांक्षा- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)चिडि़या को लाख समझाओकि पिंजड़े के बाहरधरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,वहाँ हवा में उन्हेंअपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,पर पानी के लिए भटकना है,यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।बाहर दाने का टोटा है,यहाँ चुग्गा मोटा है।बाहर बहेलिए का डर है,यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।फिर भी चिडि़यामुक्ति का गाना गाएगी,मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,हरसूँ ज़ोर लगाएगीऔर पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।