hindiperiod.comSep 10, 20201 min readहम पंछी उन्मुक्त गगन के | शिवमंगल सिंह सुमनहम पंछी उन्मुक्त गगन के- ShivMangal Singh Suman (शिवमंगल सिंह सुमन)हम पंछी उन्मुक्त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाएँगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाएँगे भूखे-प्यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील गगन की सीमा पाने,लाल किरण-सी चोंचखोलचुगते तारक-अनार के दाने।होती सीमाहीन क्षितिज सेइन पंखों की होड़ा-होड़ी,या तो क्षितिज मिलन बन जाताया तनती साँसों की डोरी।नीड़ न दो, चाहे टहनी काआश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,लेकिन पंख दिए हैं, तोआकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
हम पंछी उन्मुक्त गगन के- ShivMangal Singh Suman (शिवमंगल सिंह सुमन)हम पंछी उन्मुक्त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाएँगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाएँगे भूखे-प्यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील गगन की सीमा पाने,लाल किरण-सी चोंचखोलचुगते तारक-अनार के दाने।होती सीमाहीन क्षितिज सेइन पंखों की होड़ा-होड़ी,या तो क्षितिज मिलन बन जाताया तनती साँसों की डोरी।नीड़ न दो, चाहे टहनी काआश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,लेकिन पंख दिए हैं, तोआकुल उड़ान में विघ्न न डालो।